ए राही।
“कौन” क्या मुझे किसी ने पुकारा ?
ओ राही। तुम क्यों रो रहे हो ?क्या तुम्हारा कुछ खो गया है ?
हाँ ।
क्या ?
‘मेरे साथी ‘,मै जब अपनी मंजिल पाने के लिए घर से चली थी ,तो कुछ साथी मेरा साया बन कर मेरे साथ चल रहे थे।
उन्होंने मुझे मेरी मंजिल तक साथ रहने का आश्वाशन दिया था।
मैने उनसे कहा मुझे अकेला मत छोड़ना। परन्तु न जाने कहा से आलस,ईर्ष्या,नफरत ,धोखा कुछ शत्रु आ गए। और उनके कहने पर मेरे साथी एक एक करके सब साथ छोड़ कर चले गए।
और वो साथी कौन थे ?
वो वो साथी
परिश्रम ,आत्मविश्वाश ,खुशी,अपनापन
अहा। राही ,तुमने तो अपना सबकुछ खो दिया। क्या ,अब मै तुम्हारी सहायता कर सकती हूँ?
परन्तु तुम कौन हो ?
मै। मै हूँ आशा।
आशा ,मैने आशा की तरफ आँसू पोछते हुए देखा।
तब मुझमे आचनक नई स्फूर्ति आ गई।
तभी परिश्रम को आते देखा।
परिश्रम के साथ कुछ कदम ही चल रही थी। कि आत्मविश्वाश भी लौट आया । तभी खुशी को भी आते देखा ,अब मै इनके साथ मंजिल कि तरफ चल पड़ी।और मंजिल पर पहुँचते ही देखा कोई मुस्कुराते हुए मेरा इन्तजार कर रही थी।
मैने पूछा। आप कौन है ?
और उतर मिला
“सफलता “
सफलता के साथ खड़ी थी कि मेरे पीछे से कोई पुकार रहा था।
“अपनापन”
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