9599431236

जल ही जीवन है।

जल ही जीवन है।जल पर्यावरण का जीवनदायी व महत्वपूर्ण तत्व है। जल के बिना धरती पर जीवन असम्भव है। वनस्पति से लेकर जीव -जंतु तक अपने पोषक तत्वों की प्राप्ति…

Continue reading
2 Comments

गेम चेंजर

शतरंज के खेल मेकभी किसी परविश्वाश मत करो।क्योकि-इस खेल मे दावपेंजदिमाग मे होता है।औरइस खेल कोजीतने के लिएगेम चेंजर बनना पड़ता है।

Continue reading
0 Comments

राजा और बूढ़ा आदमी

महाराजा उदय सिंह ने अपने राज्य के दूरदूर के गांवो मे घूमने का निश्चय किया वे जानना चाहते थे कि उनके राज्य के निवासी किस तरह अपना जीवन जीते है।…

Continue reading
0 Comments

 तालाब का देवता और लकड़हारा 

एक लकड़हारा लकड़ियां काटने के बाद थक चूका था। उसे प्यास लगी। वह पानी पीने के लिए तालाब के पास गया । वह पानी पीने के लिए झुका ,तभी अचानक…

Continue reading
0 Comments

 चूहों ने सभा बुलाई 

एक समय की बात है ,चूहे  बिल्ली से बहुत परेशान थे। बिल्ली  कही से भी आ जाती थी। और दाँव लगाकर उन्हे मारकर खा जाती थी चूहों  को उसका पता…

Continue reading
0 Comments

पिता ने दी जीवन शैली की सीख  

बात पुराने समय की है।  एक व्यपारी और उसका बेटा व्यापार के लिए दूसरे देश जाते है। रास्ते मे ऊँट बेचने वाला मिलता है। ऊँट बेचने वाला कहता है। साहब…

Continue reading
0 Comments

देश के महिलाओ समिट लाखो मानव  अधिकारों का उलंघन होता है |

आज 21 वी सदी में मानव अधिकार की बात उठाना भी बहुत अश्चार्यजनक होना चाहिए था जहां हमारे जेहेन में मानव को एक मानव होने के नाते उसे सारे अधिकार…

Continue reading
0 Comments

मानव सोच

मनुष्य प्रकृति की उत्कृष्तम रचना है।  इस धरा के प्राणियों मे उसे सर्वाधिक सोचने की क्षमता प्रदान है।  यह सोच दिमाग की वो तरंगे है। जिसे मानो सदियों से असंख्य लोगो के द्वारा कुएँ से निकला गया जल के समान है। यदि यह सोच स्थिर हो जाए तो वह कुएँ की सतह पर हरी काई के सड़े हुए पानी के समान है। मनुष्य द्वारा सोचा हुआ शब्द,वह शब्द है। जो एक बार सोच लेने पर दुबारा उसी समान नहीं सोच सकता है। क्योकि मानव दिमाग क्षरभंगुर है।  जो हर पल बदलता रहता है। अभी कुछ सोचा और अगले पल कुछ और सोच लिया।  मानव सोच कभी भी स्थिर नहीं रह सकता है।  मानव मस्तिक आध्यात्मिक या कोई भी दैविक विधि -विधान द्वारा दुबारा नहीं सोचा जा सकता है। और ना ही सोच को बाँधा व रोका जा सकता है। जब तक मानव अपनी सोच पर कुछ हद तक नियंत्रण ना करे तो यह आकाश की ऊंची उड़ानें भरता रहता है। तो कभी मानव सोच वर्तमान मे ना होकर भूतकाल व भविष्य पर ज्यादा जोर देता है। मानव सोच सकारात्मकता व नकारात्मकता मे, सृजनात्मक,चमत्कारी,विध्वंशकारी और निरर्थक भी हो सकता है। जिसका असर मानव के वातावरण परिस्थिति पर पड़ने के साथ आने वाली पीढ़ियो पर भी असर पड़ता है।

Continue reading
0 Comments