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चुंगलखोर खिड़की

चुंगलखोर खिड़की एक लेखक के कमरे की हल्की रोशनी,जो शीशे की खिड़की मे ,अखबार से ढके होने के बावजूद ,रात के अँधेरे मे,अपनी उज्वलता का परिचय देती थी। क्योकि कही…

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सफाई अभियान का भूत उतर गया

सफाई अभियान का भूत उतर गया मोदी जी ने जब से सफाई अभियान शरू किया। मुझे भी इसका शौक चरमराया। मै भी इस कार्यक्रम मे बढ़चढ़ कर आगे आई। वैसे…

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जल ही जीवन है।

जल ही जीवन है।जल पर्यावरण का जीवनदायी व महत्वपूर्ण तत्व है। जल के बिना धरती पर जीवन असम्भव है। वनस्पति से लेकर जीव -जंतु तक अपने पोषक तत्वों की प्राप्ति…

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देश के महिलाओ समिट लाखो मानव  अधिकारों का उलंघन होता है |

आज 21 वी सदी में मानव अधिकार की बात उठाना भी बहुत अश्चार्यजनक होना चाहिए था जहां हमारे जेहेन में मानव को एक मानव होने के नाते उसे सारे अधिकार…

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पर्यावरण

पर्यावरण  पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ होता है ‘पर्या’ जो हमारे चारो और है और ‘आवरण’ का अर्थ ‘लबादा’ या जो हमें चारोओर से घेरेहुए है।इस प्रकार पर्यावरण का सरल शाब्दिक अर्थ हुआ ‘चारो ओर से घेरने वाला’ बाद में इसके मूल स्वरूप में परिवर्तन के बादपर्यावरण का सामान्य अर्थ हवा, पानी, भूमि, पेड़, पौधे से लगाया जाने लगा।अतः हमारे चारो और सभी वस्तुएं पाई जाती है जैसे हवा, पानी, भूमि, पेड़ पौधे तथा जीव जंतु एवं अन्य सभी वस्तुएं हमारा पर्यावरण बनाती है। जब से मनुष्य का जन्म हुआ है। वह इसी पर्यावरण में रहता आया है।इसलिए इससे हमारा बहुत पुराना सम्बन्ध है।पर्यावरण के कारण ही मनुष्य तथा अन्य जीवो का जीना संभव है इसके बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते यदि पर्यावरण के विरुद्ध कोई भी अनुचित क्रिया होती है तो वह अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दिखाता है।आज़ादी के बाद भारत में औधोगिकीकरण का दौर आया। विभिन्न क्षेत्रो में नए-नए उधोगो  की स्थापना होने लगी।अब विज्ञानं प्रोधोगिकी  विकास के युग में इतना बदल गया है कि वह उसे मात्र दोहन का स्त्रोत समझने लगा है।उपभोक्ता संस्कृति के तहत प्रकृति के संसाधनों का इतना दोहन होने लगा है कि जनसँख्या की वृद्धि के साथप्रकृतिक  संसाधन समाप्त होते जा रहे है। और प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। प्रदूषण आज विश्व्यापी समस्या बन चुकी है।  भारत सहित विकासशील देशो में यह समस्या विशेष रूप से खतरनाक रूप लेती जा रही है।जिससे आज के युग को यदि हम प्रदूषण युग कहे तो बेहतर होगा। पर्यावरण प्रदूषण एक ऐसी समस्या है जिससे मानव सहित जैव जगत के लिए जीवन की कठिनाई बढ़ती जा रही है। पर्यावरण तत्वों में गुणात्मक हास के कारण जीवनदायी तत्व जैसे वायु, जल, वनस्पति, मृदा, आदि के गुण नष्ट होते जा रहे है। इस स्थिति को ही ‘पर्यावरण प्रदूषण’ कहते है। पर्यावरण पर प्रदूषण का प्रभाव प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। वायु जल ध्वनिआदि प्रत्यक्ष प्रदूषण का प्रभाव है। मृदा वनस्पति जैसे प्रदूषण अप्रत्यक्ष प्रदूषण का प्रभाव है। औधोगिक विकास के कारण आज सबसे अधिक प्रदूषण वायु प्रदूषण में पाया जाता है। वायु जीवनदायी तत्व है। शुद्ध वायु स्वस्थ्य जीवन का आधार है। पानी और भोजन के बिना व्यक्ति कई दिन तक जीवित रह सकता है। परन्तु वायु के  बिना यह मुश्किल से कुछ ही मिनट तक जीवित बच सकता है। एक व्यक्ति प्रतिदिन औसतन 22 हज़ार बार सांस लेता है तथा शुद्ध वायु का प्रयोगकरता है। जिससे ऑक्सीजन रुधिर संचार को बनाये रखता है। अन्य प्राणी और पौधे भी वायु का उपयोग करते है। वायु की रचना में विविध प्रकार की जैसे, जलवाष्य और धूल का कण अनुपात निश्चित होता  है। संतुलित अनुपात युक्त वायु को शुद्ध अनुपात कहा जाता है। लेकिन वायु में अधिक मात्रा में धुंआ धूल विषैली गैस वायु में धूल घुल जाती है। तो उसे वायु प्रदूषण कहते है। वायु को प्रकति का अनुपम तोहफा कहा जाता सकता है। परन्तु प्रकृति की इस अनुपम भेंट को मानव द्वारा लगातार प्रदूषित किया जा रहा है।औधोगिक, मोटर कार वाहनों, घरो में जलने वाले इंधनो ताप बिजली घरो कारखानों और फैक्ट्रियों की प्रदूषित पदार्थो कोउगलती चिमनियों, युद्ध की सामग्री बम बारूदों आदि से मानव ने वायुमंडल को बुरी तरह प्रदूषित कर डाला है। वातावरण में बढ़ते कार्बनडाईऑक्साइड से दुनिया के मौसम में भयंकर परिवर्तन आने प्रारम्भ हो चुके है। जीवन की रक्षा में एक मात्र सक्षम सूर्य की अल्टावायोटिक किरणों को रोकने वाली छतरी ओजोन परत फटती चली जा रही है। इसके कारण पृथ्वी पर जीवन के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है। वायु प्रदूषण के कारण जहरीली गैसों के अवयवों से धुंआ धुंधलापन अदि से लोगो के स्वास्थ्य पर ही घातक असर पड़ रहा है। बल्कि फसलों वनस्पतियों, साग, सब्जियों, इमारतों, पुरातन धरोहरो आदि पर भयंकर दुष्प्रभाव नज़र आने लगे है।वायुप्रदूषण का भारत के अनेकों शहरों से सल्फरडाई ऑक्साइड और पर्टिकुलर मैटर की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुमोदित सुरक्षित स्तर को पार कर बहुत आगे निकल चुकी है। शहरों की 90 प्रतिशत से अधिक जनता सांस की बिमारियों से पीड़ित है।अंग्रेजी में शब्द स्मॉक, दो शब्दों ‘धुए और फॉग’ से मिलकर बना हुआ है। जिसे आम भाषा में धुआँसा या धूम कोहरा भी कहा जाता है। यह वायु प्रदूषण की भयावह स्थिति है। इसमें क्लोरो फ्लोरो कार्बन से लेकर सल्फर डाईऑक्साइड कार्बन, मोनोऑक्साइड, अति सूक्ष्म पीएम 2.5 तथा पीएम 10 कण लैंड क्लोरीन आर्सेनिक, हाइड्रोजन, सल्फाइड, नाइट्रसऑक्साइड इत्यादि मिलकर हवा या वायुमंडल को विषाक्त बना देते है।इसी तरह ताप बिजली घरो से प्रमुखतया फ्लाई ऐश (राख) कालिख और सल्फर डाई ऑक्साइड आदि तत्व व अन्य जैसे बहुत मात्रा में पाई जाती है। फ्लाई ऐश के कारण सास की बीमारियां और तपेदिक बीमारियां होती है। हाइड्रोकार्बन और नाइट्रोजन ऑक्साइड फोटोकेमिकल प्रतिक्रिया के द्वारा मंद हवा में कोहरे का निर्माण करते है। जिससे वायुमंडल से धुंधलापन बढ़ जाता है। और आँखों में जलन पैदा करता है। घरेलु प्रदूषण भी भारत देश में बुरी तरह वातावरण कोप्रभावित कर रहा है। घरो के भीतर जलावन, कोयला चूल्हा, भूसी, आदि जलाने से भी वायु बुरी तरह प्रदूषित हो रही है। विशेषकर घरो में घरेलु महिलाओं पर इसका प्रभाव देखने में आया है।भारत के उत्तर व मध्य भारतीय शहरों में पिछले दशकों में प्रदूषण का स्तर बेहद खतरनाक स्तर तक पहुँच गया है।अगर स्थिति इसी तरह जारी रही तो अगले कुछ वर्षो में उत्तर भारत के कई बड़े शहर रहने के लायक भी नहीं रहेंगे विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) की रिपोर्ट काफी चौकाने वाली है, रिपोर्ट में वर्ष 2008 से 2017 के बीच 100 देशो के 4000 शहरों में वायु प्रदूषण का ब्योरा पेश किया गया है।इसमें दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, लुधियाना, रायपुर, आदि शहरों को दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शामिल किया है। खुद केंद्र सरकार की ‘राष्ट्रीय हरित न्यायधिकरण (NGT)’ तथा ‘केंद्रीय प्रदूषण नियन्त्र बोर्ड’ (CPCB) जैसे एजेन्सिया स्थिति के…

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पुरुष भी घरेलू हिंसा के शिकार होते है।

पुरुष भी घरेलू हिंसा के शिकार होते है। स्त्री विमर्श के युग मे  पुरुषो की बात करना थोड़ा उल्टा सा है।लेकिन यह भी सच है,की सिरिष्टि और समाज मे पुरुष…

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आलोचना 

आलोचना एक प्राचीन कला है|जो आदिकाल से चली आ रही है|आलोचना करना व सुनना भी एक कला है|आलोचनना करने मे आलोचक को प्रसन्न मूड़ होना चाहिए|फला की बेटी,फला का बेटा,फला…

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भारतीय नारी का वर्तमान समाज मे स्थान

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (इंटरनेशनल वूमेन डे)8  मार्च को मनाया जाता है,फिर एक बार महिलाओ के आर्थिक,सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रो पर बहस व मुद्दे उठाये जायेगे। महिलाओं के प्रति सम्मान,प्रशंसा और प्रोतसाहित करने के लिए जगह-जगह मंच पर भाषण,सभाएँ,नुकड़-नाटक इत्यादि होगे। साथ मे अन्तरराष्ट्रीय दिवश पर छुट्टी भी हो जाएगी।पर क्या हमारे जेहन मे नहीं आता कि हमे महिलाओ की स्थिति पर एक ही दिन विचार-विमर्श करने को मिला है?देखा जाये तो आज आधुनिक युग मे नारी की…

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कोरोना वायरस ‘कोविड-19 ‘का भय

दिन प्रतिदिन बढ़ते हुए कोरोना वायरस को देखते हुए दुनिया के वैज्ञानिको व डॉक्टरो के सामने यह सवाल खड़ा है कि इस महामारी से कैसे बचा जाए? कोरोना वारयस मनुष्यो…

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