जल ही जीवन है।जल पर्यावरण का जीवनदायी व महत्वपूर्ण तत्व है। जल के बिना धरती पर जीवन असम्भव है। वनस्पति से लेकर जीव -जंतु तक अपने पोषक तत्वों की प्राप्ति…
गेम चेंजर
शतरंज के खेल मेकभी किसी परविश्वाश मत करो।क्योकि-इस खेल मे दावपेंजदिमाग मे होता है।औरइस खेल कोजीतने के लिएगेम चेंजर बनना पड़ता है।
The Big mouth Turtle
Once, there lived a turtle in a pound. He was a very simple and sober but very talkative. He often broke into foolish conversations with others. Two swans visited that…
राजा और बूढ़ा आदमी
महाराजा उदय सिंह ने अपने राज्य के दूरदूर के गांवो मे घूमने का निश्चय किया वे जानना चाहते थे कि उनके राज्य के निवासी किस तरह अपना जीवन जीते है।…
लोमड़ी और कौआ की कहानी
एक था कौआ। एक बार उसे कही से एक रोटी का टुकड़ा मिल गया। उसे लेकर वह एक पेड़ की डाल पर बैठ गया। इतने मे कही से एक लोमड़ी…
तालाब का देवता और लकड़हारा
एक लकड़हारा लकड़ियां काटने के बाद थक चूका था। उसे प्यास लगी। वह पानी पीने के लिए तालाब के पास गया । वह पानी पीने के लिए झुका ,तभी अचानक…
चूहों ने सभा बुलाई
एक समय की बात है ,चूहे बिल्ली से बहुत परेशान थे। बिल्ली कही से भी आ जाती थी। और दाँव लगाकर उन्हे मारकर खा जाती थी चूहों को उसका पता…
पिता ने दी जीवन शैली की सीख
बात पुराने समय की है। एक व्यपारी और उसका बेटा व्यापार के लिए दूसरे देश जाते है। रास्ते मे ऊँट बेचने वाला मिलता है। ऊँट बेचने वाला कहता है। साहब…
देश के महिलाओ समिट लाखो मानव अधिकारों का उलंघन होता है |
आज 21 वी सदी में मानव अधिकार की बात उठाना भी बहुत अश्चार्यजनक होना चाहिए था जहां हमारे जेहेन में मानव को एक मानव होने के नाते उसे सारे अधिकार…
मानव सोच
मनुष्य प्रकृति की उत्कृष्तम रचना है। इस धरा के प्राणियों मे उसे सर्वाधिक सोचने की क्षमता प्रदान है। यह सोच दिमाग की वो तरंगे है। जिसे मानो सदियों से असंख्य लोगो के द्वारा कुएँ से निकला गया जल के समान है। यदि यह सोच स्थिर हो जाए तो वह कुएँ की सतह पर हरी काई के सड़े हुए पानी के समान है। मनुष्य द्वारा सोचा हुआ शब्द,वह शब्द है। जो एक बार सोच लेने पर दुबारा उसी समान नहीं सोच सकता है। क्योकि मानव दिमाग क्षरभंगुर है। जो हर पल बदलता रहता है। अभी कुछ सोचा और अगले पल कुछ और सोच लिया। मानव सोच कभी भी स्थिर नहीं रह सकता है। मानव मस्तिक आध्यात्मिक या कोई भी दैविक विधि -विधान द्वारा दुबारा नहीं सोचा जा सकता है। और ना ही सोच को बाँधा व रोका जा सकता है। जब तक मानव अपनी सोच पर कुछ हद तक नियंत्रण ना करे तो यह आकाश की ऊंची उड़ानें भरता रहता है। तो कभी मानव सोच वर्तमान मे ना होकर भूतकाल व भविष्य पर ज्यादा जोर देता है। मानव सोच सकारात्मकता व नकारात्मकता मे, सृजनात्मक,चमत्कारी,विध्वंशकारी और निरर्थक भी हो सकता है। जिसका असर मानव के वातावरण परिस्थिति पर पड़ने के साथ आने वाली पीढ़ियो पर भी असर पड़ता है।