एक माँ की अर्थी
देखो जा रही है। एक माँ की अर्थी
क्यों तुम सब अब रो रहे हो।
अब मिट्टी बने शरीर को,क्यों छू रहे हो।
अब तो इनके प्राण पखेरू तो उड़ गए।
जब इनके शरीर मे आत्मा थी।
तो दूर भागा जा रहा था।
अब तो इनके पास झुण्ड बनाकर बैठो हो।
कहाँ थी,तुम सब को फुरसत
क्यों आये हो झूठे आँसू लेकर
अब तो देर हो गई।
कैसे बया करेंगी दर्द अपना
रिश्ते नाते थे जब तुम
एक बार
वयाकुलता देखी होती ,तड़प और चिघार
दहल उठती आत्मा भी तुम्हारी
आज चंद औरतो के कहने पर
नर्क बने जीवन को
क्यों स्वर्ग दिया जा रहा है।
नहीं पूछा अन्न कभी ,नहीं पूछा खैर खबर
नहीं दिया एक शाल कभी
आज शाल पे शाल चढ़ाये जा रहे हो।
आज समाज इकठ्ठा हुआ
तो सारे पकवान चढ़ाये जा रहे हो।
अब कहाँ उठेगा ये मृत शरीर
ना ही जल पीयेगा,और ना ही भोजन करेगा।
मै एक मात्र गवाह हूँ ।
मै जानती हूँ।
इनके जीवन के अंतिम सफर से
और आत्मा के जाने तक व्यथा
जानकर अब कोई लाभ नहीं
सत्य भी अब झूठा है ।
एक माँ की अर्थी
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