एक था कौआ। एक बार उसे कही से एक रोटी का टुकड़ा मिल गया। उसे लेकर वह एक पेड़ की डाल पर बैठ गया। इतने मे कही से एक लोमड़ी घूमती हुई वहाँ आ गई। उसने सोचा ,किसी तरह यह रोटी का टुकड़ा मिल जाए तो मजा आ जाए। पर वह रोटी का टुकड़ा मिले कैसे ? लोमड़ी ने कुछ देर सोचा। फिर वह उस कौवे के पास जाकर बोली ,अहा कौआ ,”तुम तो अत्यंत सुन्दर हो। तुम्हारे जैसा सुन्दर रूप जंगल के पक्षियों में से किसी के पास नहीं है। जब ईश्वर ने तुम्हे इतना सुन्दर रूप दिया है , तो भला तुम्हारा गाना कितना सुन्दर होगा ? जरा अपने मीठे गले से एक गाना सुना दो , तो मेरा मन खुश हो जाए। “अब तो कौवे से रहा नहीं गया। उसने सोचा , लोग अक्सर कहते है कि मै बड़ा बेसुरा गाता हूँ। पर मै आज इस लोमड़ी को दिखा दूँगा। कि मेरे सुन्दर रूप कि तरह ही मेरा गाना भी कितना सुरीला है। ऐसा सोचकर कौवे ने ज्यों ही गाने के लिए मुँह खोला , उसकी चोंच मे दबी रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया। वह जमीन पर गिरता , इससे पहले ही हवा मे छलाँग लगाकर लोमड़ी ने उसे लपक लिया और उसी समय नौ – दो ग्यारह हो गई।
सीख : मूर्ख आदमी झूठी तारीफ से खुश होकर अक्सर धोखा खा जाता है।
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