दो बकरी 

 दो बकरी 

एक जंगल से होकर एक नदी बहती थी। उस नदी का बहाव काफी तेज था। उस नदी पर एक बहुत ही सँकरा पुल था। उस पुल से एक बार मे एक ही व्यक्ति या एक ही जानवर जा सकता था। एक साथ दो व्यक्तियों द्वारा पुल पार करना बहुत खतरनाक था क्योकि वे नदी मे गिर सकते थे। 

एक दिन ,शाम के समय एक काली बकरी और एक सफेद बकरी विपरीत दिशाओ से पुल पार करने लगी। वे दोनों इस बात से अनजान थी कि पुल पार करने वाली वे अकेली नहीं है और वे आगे बढ़ती रही। दोनों बकरियाँ पुल के मध्य मे एक दूसरे से मिली। उन्हें यह बात अच्छी तरह पता थी कि उस सँकरे पुल से एक बार मे सिर्फ एक ही जानवर जा सकता है।

 लेकिन दोनों बकरियाँ बहुत घमंडी थी। काली बकरी ,सफेद बकरी से कठोर आवाज मे बोली ,”ऐ  तुमने मेरा रास्ता क्यों रोका हुआ है ?वापस लौट जाओ और मुझे नदी पार करने दो। “

यह सुनकर सफेद बकरी को बहुत गुस्सा आ गया।  वह लाल पीली होती हुई बोली ,”तुम होती कौन हो मुझे आदेश देने वाली ?” मै भी किसी की गुलाम नहीं नहीं हूँ। तुम्हे ही पीछे जाना पड़ेगा। लेकिन काली बकरी भी पीछे हटने को तैयार नहीं थी। 

अब यह उनके अहम का सवाल बन चूका था। जल्दी ही उनके बीच बहस होने लगी। दोनों बकरियों ने गुस्से मे अपने सींग भिड़ा दिए और उस सँकरे पुल पर लड़ने लगी। पुल पर जगह बहुत कम थी। इसलिए उन दोनों का संतुलन बिगड़ गया और वे नदी कि तेज धारा मे जा गिरी। 

सीख :गुस्सा  करने वाले हमेशा नुकसान मे रहते है।