तालाब का देवता और लकड़हारा 

एक लकड़हारा लकड़ियां काटने के बाद थक चूका था। उसे प्यास लगी। वह पानी पीने के लिए तालाब के पास गया । वह पानी पीने के लिए झुका ,तभी अचानक उसके हाथ से उसकी कुल्हाड़ी छूटकर पानी मे गिर गई। लकड़हारा दुखी होकर रोने लगा ,कि “अब मै भला लकड़ी कैसे काटूँगा। अब मै कैसे गुजारा करुँगा “? उस तालाब में रहने वाले जल देवता ने दुखी लकड़हारे की बात सुनी तो झट बहार निकल कर पूछा ” तुम रो क्यों रहे हो ?” तब लकड़हारे ने कुल्हाड़ी गिर जाने की बात बताई । तभी तालाब के देवता ने डुबकी लगाई । थोड़ी देर बाद वह बहार निकला , तो उसके हाथ में एक सोने ठोस सोने की बनी चम -चम चमकती कुल्हाड़ी थी । उसने लकड़हारे से कहा ,” शायद यही तुम्हारी कुल्हाड़ी है ” ? लकड़हारा बोला , ” नहीं -नहीं यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है । ” इस पर तालाब के देवता ने दोबारा डुबकी लगाई । जब वह बाहर निकला तो उसके हाथ मे चाँदी की चमकती हुई कुल्हाड़ी थी । ,लेकिन लकड़हारे ने इस बार भी साफ-साफ कहा ,” नहीं ,यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है । ” इस पर तालाब के देवता ने फिर पानी मे डुबकी लगाई । इस बार जिस लोहे की कुल्हाड़ी के साथ बाहर आया ,उसे देखते ही लकड़हारे ने चिलाकर कहा ,” हाँ -हाँ ,यही है मेरी कुल्हाड़ी “। तालाब के देवता ने लकड़हारे को उसकी कुल्हाड़ी सौंप दी । और कहा , मै तुम्हारी ईमानदारी से खुश हूँ इसलिए सोने और चाँदी की ये कुल्हाड़ियाँ भी तुम्ही रख लो “। सीख : ईमानदार आदमी को सभी पसंद करते है ।