जल ही जीवन है।

जल ही जीवन है।
जल पर्यावरण का जीवनदायी व महत्वपूर्ण तत्व है। जल के बिना धरती पर जीवन असम्भव है। वनस्पति से लेकर जीव -जंतु तक अपने पोषक तत्वों की प्राप्ति जल के माध्यम से करते है। मनुष्य जीवन भी जल पर निर्भर है। मनुष्य के शरीर का लगभग दो तिहाई भाग जल से बना हुआ है। मनुष्य के अच्छे स्वास्थ्य के लिए जीवन आधार है। मनुष्य दैनिक जीवन मे जल का प्रयोग करता है। मनुष्य जल का उपयोग कृषि मे व पेड़ पौधो की सिचाई मे करता है। क्योकि पेड़ -पौधे भी जल का उपयोग करते है। परन्तु आज मनुष्य इतने महत्वपूर्ण व जीवनदायी जल को नष्ट कर रहा है।
जल प्रदुषण ,सृष्टि को विनाश की ओर ले जा रहा है। वह नदियों व तालाबों के पानी को दूषित कर रहा है। वह औधोगिक कारखानों व फैक्ट्रियों के बचे व बेकार माल को नदियों व तलाबो मे बहा देते है। लोग घरो के कूड़े- कचड़ो को भी इन नदियों मे बहा देते है। इन नदियों के पानी मे स्वयं नहाते है। और मवेशियों को भी नहलाते है। जिससे जल दूषित हो जाता है। जिससे मानव विभिन्न प्रकार की बीमारियों के चंगुल मे फसंता जा रहा है।
घरो मे सप्लाई हो रहे पानी को अत्यधिक नष्ट कर रहे है। वह नलों को खोल देते है। जिससे शुद्ध पानी नालियों मे बह जाता है। जल को महत्त्व नहीं देते है। कि “जल ही जीवन है। ” जीव-जंतु भी हमारे जैव परिमण्डल का एक अंग है। इसके अतिरिक्त जीव -जंतु कई और कारणों से भी हमारे जीवन मे महत्वपूर्ण स्थान रखते है। परन्तु पशु -पक्षी आज स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहे है। उन्हे पीने को जल पर्याप्त नहीं मिल रहा है। जितनी उनकी दिन की दैनिक आवश्यकता होती है। इसके पीछे मनुष्य प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से स्वयं जिम्मेदार है। जल ना मिलने के कारण मनुष्य के साथ , पशु – पक्षियों का जीवन विनाश के कगार पर पहुँच गया है।
मनुष्य ,पशु -पक्षी व पेड़ -पोधो का जीवन केवल जल पर निर्भर है। परन्तु जल जीवनदायी तत्व अपनी गुणवत्ता खोने के साथ साथ समाप्त होते जा रहे है। आज जल के प्रति इस प्रकार की लापरवाही होती रही। तो वह दिन दूर नहीं, जब पृथ्वी से सब कुछ समाप्त हो जाएगा। अतः सबसे पहले मानव को जल के प्रति जागरूक करना होगा। कि हम पानी की बर्बादी को रोकर पानी की बचत करे। इसके लिए शिक्षा द्वारा ,विज्ञापनों द्वारा ,राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।